युद्ध नही चाहना कोई बहुत पॉजिटिव बात नही होती है जैसा आजकल माने जाने का प्रचलन है। आज की शिक्षा व्यवस्था हमें अप्राकृतिक रूप से अहिंसावादी आदि बनाने पर तुली है। जो जो भी समाज किसी भी गुण को अवगुण ठहराते हैं (और उसे नीच दर्शाते हैं दूसरे गुणों के समक्ष) वे समाज नष्ट होते हैं। इतिहास गवाह है।
ब्राह्मण गुण ज्ञान और सात्विकता की रक्षा है, तो क्षत्रिय गुण है व्यर्थ की अहिंसा न रटते हुए धर्मानुकूल हिंसा को शिरोधार्य करना। वैश्य गुण है संसाधनों का सदुपयोग करते हुए उन्हें बढ़ाना। शूद्र गुण इन सबके शुभ कार्यों के होने के लिए अपनी सेवा दे इनके जीवन को इन कर्मों के लिए समकूलता का वातावरण रखना। चारों गुण वन्दनीय हैं। कोई ऊंचा नीचा नही है।
आज कलयुग में हम ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य तीनो को निचले दर्जे का "शोषक" "हिंसावादी" "पैसे का पुजारी" जैसे लेबल लगा कर उनके प्राकृतिक धर्म से उन्हें गिरा रहे हैं। दूसरी तरफ "शूद्र" शब्द को दलित शोषित का अवतार दे कर शिक्षक (ब्राह्मण) रक्षक(क्षत्रिय) और पालक(वैश्य) व्यवस्था ने तीनों को दलित शत्रु दर्शा दिया हैं।
तो हमारे समाज का मलेच्छों द्वारा परास्त होना निश्चित है। अति किसी की भली नही।अहिंसा की भी नही बुद्धिजीविता की भी नही तथाकथित उच्चादर्शों की भी नही।
यह
" हम युद्ध न होने देंगे " पर लिखा है :) युद्ध भी शुभ है इस बात के प्रति जागने का समय है। अहिंसा को अति उच्च और हिंसा को अति नीच मान लेना निश्चित पतन को ले जाएगा।
ब्राह्मण गुण ज्ञान और सात्विकता की रक्षा है, तो क्षत्रिय गुण है व्यर्थ की अहिंसा न रटते हुए धर्मानुकूल हिंसा को शिरोधार्य करना। वैश्य गुण है संसाधनों का सदुपयोग करते हुए उन्हें बढ़ाना। शूद्र गुण इन सबके शुभ कार्यों के होने के लिए अपनी सेवा दे इनके जीवन को इन कर्मों के लिए समकूलता का वातावरण रखना। चारों गुण वन्दनीय हैं। कोई ऊंचा नीचा नही है।
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