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गुरुवार, 4 जून 2015

शिव पुराण १३ : त्रियम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग गोदावरी गौतमी गंगा


त्रियम्बकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के नाशिक जिले में स्थित हैं। गोदावरी नदी के उद्गम इस मंदिर के प्रांगण में एक कुशावर्त नामक कुण्ड है जो गोदावरी नदी का उद्गम स्थल कहा जाता है। गोदावरी नदी यहां से चल कर करीब डेढ़ हज़ार किलोमीटर का सफर करने के बाद आंध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में प्रविष्ट होती हैं।

शिव पुराण में कहा गया है कि एक बार भयंकर सूखा पड़ा।  ब्रह्मपर्वत नामक पर्वत पर महर्षि गौतम अपनी पत्नी अहल्या के साथ निवास करते थे।  गौतम ऋषि और अहल्या जी ने वहां दस हज़ार वर्षों तक पति के संग तपस्या की थी । उस समय जब भयंकर सूखा पड़ा तो अकाल आया और पशु पक्षी और मनुष्य भूख प्यास से मरने लगे। तब श्री गौतम जी ने वरुण देव से प्रार्थना की कि वहां वर्षा करावें।  किन्तु यह वरुण देव के अधिकार क्षेत्र से बाहर था क्योंकि वे जल सामग्री के देव हैं किन्तु वर्षा और मेघ इंद्रदेव का अधिकार क्षेत्र है।  तब गौतम जी ने उनसे कहा कि वहां सदा बहने वाली झील हो जिससे उस स्थल पर कभी जल संकट न आये।  यह प्रदान कर वरुण देव अंतर्ध्यान हुए।  

देवी अहल्या पति सहित वहां रहतीं थीं ।  कहते हैं कि गौतम सुबह बीज बोते और दोपहर फसल काटते और सबऋषि मुनियों और साधारण जनों को भोजन करवाते।  इससे उनके पुण्य बहुत बढ़ने लगे और इंद्र को चिंता हुई।  तब इंद्र ने वहां वर्षा करवाई जिससे ब्राह्मण अपना भोजन के लिए गौतम पर ही निर्भर न रहें और गौतम का पुण्य और न बढे। किन्तु सब ठीक हो जाने पर भी गौतम जी ने आदर सहित मुनियों को वहीँ रहने को कहा और अपना पुण्यकार्य करते रहे। 

इधर वरुण देव द्वारा प्रदान की गयी पवित्र झील का जल सभी प्रयुक्त करते।  दूसरे मुनियों की पत्नियां वहां जातीं और जल लेटिन।  जब गौतम महर्षि के शिष्य वहां जाते तो वे उन्हें भगा देतीं।  यह जानने पर अहल्या जी स्वयं जल लेने जाने लगीं।  अन्य मुनिपत्नियां न चाहती थीं कि वे वहां से जल लें और वे उनपर अनेक व्यंग्य आदि करतीं किन्तु अहल्या जी चुप चाप जल लेकर लौट आतीं।  मुनि पत्नियां अपने पतियों से अहल्या की बुराई कहतीं।  धीरे धीरे सब यह मानने लगे कि गौतम और अहल्या ही गलत हैं।  तब सब मुनियों ने गणेश जी का आवाहन किया और उनसे माँगा कि गौतम और अहल्या को यहां से भगाए दिया जाए।  गणेश जी ने यह वरदान दे दिया। 

इधर शिव जी की पत्नी पार्वती थीं किन्तु गंगा जी शिव जी की जटाओं में बसी होती हैं।  पार्वती को यह अच्छा न लगता था , और शिव जी गनगा को अलग करने पर राजी न थे।  तब गणेश जी ने अपनी माता को सुख देने और मुनियों को दिए वरदान की पूर्ती करने के लिए एक स्वांग रचा।  पार्वती जी की एक सहेली थीं - जया।  गणेश जी ने उन्हें गाय का रूप लेने को कहा और कहा कि जब गौतम तुम्हे भगाने आएं तो मरने का स्वांग रचना।  तब जाया गाय बन कर गौतम जी के खेतों में घुस गयीं।  गौतम जी ने उन्हें हटाने के लिए कुशा घास से मार तो गाय मर कर गिर पड़ी।  यह देख कर मुनियों ने "गौहत्या" का आरोप लगा कर कहा कि ऐसे पापी के संग हम न रहेंगे।  हम जा रहे हैं।  गौतम जी ने उनसे प्रार्थना की कि वे वहीँ रहें और प्रायश्चित्त का तरीका पूछा।  

मुनियों ने कहा कि उन्हें पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करनी होगी , फिर एक महीने कठिन तप और ब्रह्मपर्वत  सौ प्रदक्षिणाएँ। इसके पश्चात सौ पवित्र सरोवरों में स्नान।  यह सब गौतम जी और अहल्या जी ने किया ।  शिव जी उनके सम्मुख प्रकट हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा।  गौतम जी ने यह माँगा कि वे पार्वती जी सहित सदा वहां निवास करें , और गंगा जी इस क्षेत्र में बहें। 

तब शिव जी त्रियंबक लिंग के रूप में स्थापित हुए। शिव जी चाहते थे कि गंगा जी गौतम जी के मांगे वरदान के अनुरूप वहां प्रकट हों किन्तु गंगा जी शिव जी के सर चढ़ी थीं और उतरना न चाहती थीं।  क्रोधित हो शिव जी ने तांडव नृत्य किया और अपनी जटाएं पटकीं , जिससे गंगा जी छिटक गयीं।  किन्तु केशों से छिटके पानी के छींटों की तरह गंगा जी यहाँ वहां प्रकटतीं और लुप्त हो जातीं।  गौतम जी उनमे स्नान कर अपना गौहत्या का पाप धोना चाहते थे किन्तु गंगा इतनी देर कहीं न रुकतीं कि वे स्नान कर सकें।  तब गौतम जी ने ज्योतिर्लिंग के समीप ही "कुशा" घास में उन्हें बाँध दिया (आवर्त कर दिया) इसीसे इस सरोवर का नाम "कुशावर्त" हुआ। इस कुण्ड में बंधने के बाद गंगा जी वहां से बहने लगीं। इसीलिए गोदावरी जी को "गौतमी गंगा" भी कहते हैं। 

किन्तु शिव जी मुनियों के स्वांग को जानते थे और उन्हें दंड देना चाहते थे।  गौतम महर्षि ने उन मुनियों को क्षमादान दिलवाया। गोदावरी / गौतमी गंगा के माहात्म्य की कई कथाएं आगे आएंगी। किन्तु इनमे स्नान कर लाभ लेने वालों में श्री बलराम जी, चैतन्य महाप्रभु, आदि की कथाएं बड़ी प्रसिद्ध हैं। गोदावरी जी के किनारे ही बारह वर्षों में एक बार पुष्कर मेला लगता है।  



त्रियम्बकेश्वर मंदिर











गोदावरी जी का उद्गम - मंदिर के पास कुशावर्त सरोवर। 

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